(नई दिल्ली)23मई,2025.
नीट पीजी में सीट ब्लॉकिंग की बढ़ती शिकायतों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक अहम आदेश जारी किया है। अब देश की सभी प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटियों को काउंसलिंग शुरू होने से पहले अपनी पूरी फीस संरचना (ट्यूशन फीस, हॉस्टल फीस, सिक्योरिटी डिपॉजिट और अन्य शुल्क) सार्वजनिक करनी होगी।
जस्टिस जे.बी. पारडीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि सीट ब्लॉकिंग की यह प्रथा केवल एक अनैतिक कार्य नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करती है। इसमें पारदर्शिता की कमी, शासन में समन्वय की कमी और नीतियों के ढीले पालन जैसी समस्याएं शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य बातें:
सभी यूनिवर्सिटियों को काउंसलिंग से पहले फीस का खुलासा करना अनिवार्य होगा।
नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के तहत एक केंद्रीकृत फीस रेगुलेशन सिस्टम विकसित किया जाएगा।
सीट ब्लॉक करने वाले छात्रों और कॉलेजों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी- जैसे सिक्योरिटी डिपॉजिट की जब्ती, भविष्य की नीट पीजी परीक्षाओं से अयोग्यता, और कॉलेज का ब्लैकलिस्ट होना।
ऑल इंडिया कोटा और राज्य स्तरीय काउंसलिंग को समान कैलेंडर के तहत लाने का निर्देश ताकि सीट ब्लॉकिंग को रोका जा सके।
काउंसलिंग के दूसरे राउंड के बाद छात्रों को बेहतर सीट पर अपग्रेड का विकल्प मिलेगा, लेकिन नए छात्रों के लिए काउंसलिंग नहीं खोली जाएगी।
रॉ स्कोर, उत्तर कुंजी और नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूला को सार्वजनिक करने का निर्देश भी दिया गया है ताकि परीक्षा में पारदर्शिता बनी रहे।
सीट ब्लॉकिंग क्यों है बड़ा मुद्दा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीट ब्लॉकिंग की वजह से असल में उपलब्ध सीटों की गिनती गलत हो जाती है, जिससे योग्य छात्रों को नुकसान होता है। यह प्रक्रिया मेरिट के बजाय भाग्य पर आधारित होती जा रही है, जो मेडिकल शिक्षा में असमानता को बढ़ावा देती है।
यह फैसला उत्तर प्रदेश सरकार और डायरेक्टर जनरल मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, लखनऊ की ओर से दाखिल याचिका पर आया है। याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2018 के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें दो छात्रों को मुआवजा देने और सीट ब्लाकिंग के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए गए थे (साभार एजेंसी)