पाकिस्तानी शरणार्थियों को उ.प्र.में मिलेगा जमीन का हक

UP / Uttarakhand

( लखनऊ UP )03जून,2025.

उत्तर प्रदेश में बसे पाकिस्तानी शरणार्थियों को उत्तराखंड की तर्ज पर जमीन का हक दिया जाएगा। इस संबंध में मुरादाबाद के मंडलायुक्त आन्जनेय कुमार सिंह की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। वर्तमान में करीब 20 हजार शरणार्थी परिवार 50 हजार एकड़ भूमि पर काबिज है, लेकिन उन्हें जमीन पर पूरा मालिकाना हक आज तक नहीं मिला है।

1947 में भारत-पाक विभाजन के समय पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को लखीमपुर खीरी, रामपुर, बिजनौर और पीलीभीत में बसाया गया था। इन्हें जीविकोपार्जन के लिए जमीन भी दी गई थी। इनमें से अधिकतर हिंदू और सिख शरणार्थी थे। लेकिन, इनमें से तमाम परिवारों को संक्रमणीय भूमिधर अधिकार नहीं मिला। यानी, इन परिवारों के वारिस अपनी जमीन पर बैंक से फसली ऋण के अलावा कोई और ऋण नहीं ले सकते। उन्हें जमीन बेचने का भी अधिकार नहीं है।

रामपुर में 23 व बिजनौर में 18 गांवों में बसे हैं शरणार्थी:
रामपुर में तो शरणार्थियों के 23 गांव हैं। बिजनौर में ये शरणार्थी अलग-अलग 18 गांव में बसे हैं। लखीमपुर खीरी और पीलीभीत में अलग-अलग गांवों में या जंगलों के किनारे ये लोग बसाए गए। आन्जनेय कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ शरणार्थी परिवारों को तब गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट (सरकारी भूमि अनुदान अधिनियम) के तहत जमीन दी गई थी। ग्राम सभा और विभिन्न विभागों की स्वामित्व वाली जमीन पर भी बसाया गया। वर्तमान में गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट समाप्त हो चुका है।

शरणार्थी के पूर्ण स्वामित्व के लिए कानून बनाना जरूरी:
इन शरणार्थी परिवारों को दी गई जमीन पर पूर्ण स्वामित्व यानी संक्रमणीय भूमिधर अधिकार देने के लिए अलग से कानून बनाने की आवश्यकता होगी, ताकि इन मामलों में मौजूदा नियम शिथिल किए जा सकें। उत्तराखंड के कई जिलों में स्वामित्व देने का काम जमीन का कुछ प्रतिशत मूल्य लेकर किया जा चुका है। उत्तराखंड की तरह ही यहां भी कुछ मूल्य लेकर या निशुल्क संक्रमणीय भूमिधर अधिकार दिया जा सकता है। अलबत्ता, कुछ शरणार्थी परिवार आरक्षित श्रेणी की वन भूमि, चरागाह और तालाब पर भी बसे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्हें अन्यत्र जमीन देने या फिर उसी जमीन पर स्वामित्व अधिकार देने के लिए कानून में बदलाव करने पर विचार करना होगा। यहां बता दें कि वन भूमि पर अधिकार देने के लिए केंद्र सरकार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की अनुमति भी लेनी होगी। वहीं, नियमानुसार ग्राम सभा की भूमि उसी गांव के मूल निवासियों को दी जा सकती है। इसी तरह से विभागों की भूमि देने का अधिकार भी संबंधित विभागों को ही है।

गठित हो सकती है कैबिनेट की उप समिति:
शासन के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इस मामले में अब आगे विचार करने के लिए कैबिनेट की उप समिति बनाई जा सकती है। अंतिम निर्णय सरकार को ही लेना है।(साभार एजेंसी)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *