(सहारनपुर UP)06अक्टूबर,2024.
इस्लामी तालीम के प्रमुख केंद्र दारुल उलूम में स्थित लाइब्रेरी का स्टाफ गौरवशाली इतिहास को तकनीक के सहारे संजोने की कवायद में जुटा हुआ है। दो लाख से अधिक किताबों में दर्ज इस इतिहास को न सिर्फ स्कैन कर कंप्यूटर में सुरक्षित किया जा रहा है, बल्कि इन किताबों को बाइंडिंग कर इन्हें सुरक्षित रखने का भी प्रयास चल रहा है।
दरअसल, दारुल उलूम में सन 1866 में स्थापित लाइब्रेरी में दो लाख से अधिक ऐतिहासिक पुस्तकें रखी हुई हैं। जिनमें से 1563 किताबें हाथ से लिखी हुई हैं, जो उर्दू ,अरबी,फारसी, संस्कृत भाषा में हैं। इनमें मुगल बादशाह हजरत औरंगजेब के हाथ से लिखा हुआ मुकद्दस कुरआन और जंतु विज्ञान पर लिखी गई इमामदीन जिकरिया की 750 साल पुरानी पांडुलिपि भी शामिल है।
यहां 500 साल से लेकर 800 साल तक की पांडुलिपियां हैं। जो दारुल उलूम को बतौर हदिया (तोहफा अथवा दान) में मिली है। इन्हीं संजोकर रखने में लाइब्रेरी स्टाफ काफी गंभीरता और सावधानी बरत रहा है। बहुत पुरानी होने के कारण यह गौरवशाली इतिहास धुंधला पड़ने लगा और इन पुस्तकों के कागज टूटकर गिरने लगे। इतिहास को जिंदा रखने के लिए लाइब्रेरी स्टाफ ने इन्हें संजोने का काम शुरू किया है।
लाइब्रेरी में यह रखी हैं पुस्तकें:
पुरानी लाइब्रेरी में बेशकीमती पुस्तकों का जखीरा मौजूद है। लाइब्रेरी में जहां सभी धर्मों के ग्रंथ मिलते हैं। वहीं, राजा महाराजाओं की हस्तलिखित किताबें व लेख भी बेहद संभाल कर रखे गए हैं। लाइब्रेरी में ऋगवेद, सामवेद, यर्जुवेद, अथर्ववेद के साथ ही गीता, महाभारत, रामायण और बाइबल समेत हजारों अन्य ऐतिहासिक पुस्तकें है।
इस पुस्तकालय के महत्व का अंदाजा यूं भी लगाया जा सकता है कि अरब देशों, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, अफगानिस्तान सहित विश्वभर के शोधकर्ता इस्लाम धर्म के विषयों पर शोध करने के लिए समय-समय पर पुस्तकालय में संपर्क करते हैं(साभार एजेंसी)