(संत कबीरनगर UP)14अक्टूबर,2024.
लहुरादेवा में ईसा से छह से नौ हजार वर्ष पहले की सभ्यता की कहानी बताता है। यहां पर धान की खेती के सबसे पुराने अवशेष मिले थे, लेकिन खुदाई के बाद खुदाई की जगह को दोबारा मिट्टी से भरकर यूं ही छोड़ दिया गया है। लहुरादेवा स्थित कोट को सरकार ने स्मारक घोषित किया है।
पुरातत्व विभाग को लहुरादेवा में खुदाई के खेती के पुराने अवशेष मिले थे। इसमें अनाज के भंडारण के लिए डेहरियां, लगभग आठ हजार साल पहले धान की खेती के अवशेष प्राप्त हुए शामिल हैं। यहां पर टीला बना हुआ है, यह छह से नौ हजार वर्ष पहले सभ्यता की कहानी बताता है।
इसको देखते हुए डीएम ने इसे धरोहर के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की है। यहां पर बाउंड्रीवाल, खनन में मिले अवशेष को संरक्षित करने के साथ ही म्यूजियम, पर्यटकों के ठहरने के लिए गेस्ट हाउस बनाने की तैयारी है। समय माई के टीला को भी विकसित किया जाएगा।
जिले के सेमरियावां ब्लॉक का ऐतिहासिक स्थल लहुरादेवा को पर्यटन के दृष्टि से विकसित करने के लिए डीएम ने पहल की है। वर्षों से उपेक्षित पड़े इस स्थल के विकास के लिए कार्य योजना तैयार की गई है। इसमें यहां की विरासत को संरक्षित करने के साथ ही आधुनिकता और अन्य सुविधाओं से लैस करने काम किया जाएगा।
विकास के लिए जो कार्य योजना बनी है, उसके तहत शासन स्तर से प्राप्त बजट के साथ ही स्थानीय स्तर से बजट उपलब्ध कराकर कार्य कराए जाएंगे। इसमें यहां पर बाउंड्रीवाल बनाने के साथ ही पयर्टकों को लुभाने के लिए म्यूजियम, यहां आने वाले सैलानियों के ठहरने के लिए गेस्ट हाउस, समय माई के टीले को विकसित किया जाएगा।
खुदाई में धान की खेती के मिले थे पुराने अवशेष
लहुरादेवा में ईसा से छह से नौ हजार वर्ष पहले की सभ्यता की कहानी बताता है। यहां पर धान की खेती के सबसे पुराने अवशेष मिले थे, लेकिन खुदाई के बाद खुदाई की जगह को दोबारा मिट्टी से भरकर यूं ही छोड़ दिया गया है। लहुरादेवा स्थित कोट को सरकार ने स्मारक घोषित किया है।
टीले का उत्खनन का कार्य उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग ने डॉ. राकेश तिवारी के निर्देशन मं 2001 से 2006 तक किया था। इस स्थल से डेहरियां, लगभग आठ हजार साल पूर्व के धान की खेती के अवशेष मिले थे(साभार एजेंसी)