मंगल ग्रह पर चुंबकीय क्षेत्र-आयनमंडल संबंध को डिकोड करने से भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में मदद मिल सकती है

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(नई दिल्ली) 30अगस्त,2024.

मंगल के सतहीय चुंबकीय क्षेत्र की खोज करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि क्रस्टल क्षेत्र प्रभाव दिन के समय बहुत प्रबल होते हैं लेकिन रात के समय वे लगभग न के बराबर होते हैं, साथ ही दिन के समय क्रस्टल क्षेत्र प्रभाव मौसम या सूर्य-मंगल की दूरी से अप्रभावित रहते हैं।

मंगल ग्रह के क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्र और मंगल के पास के प्लाज्मा वातावरण पर इसके प्रभावों को डिकोड करना चुंबकीय परिरक्षण (मैग्नेटिक शील्डिंग) को समझने के लिए महत्वपूर्ण है जिसका अंतरिक्ष में भविष्य के रोबोटिक / मानव मिशनों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

मंगल एक ऐसा ग्रह है जिसके पास अपना वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र नहीं है। हालाँकि, मंगल के दक्षिणी गोलार्ध में क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्र बिखरे हुए हैं। क्रस्टल क्षेत्र 30° दक्षिण अक्षांश के ध्रुव (सदर्न हेमिस्फेयर) की ओर और 120° पूर्व से 240° पूर्व देशांतर क्षेत्र के भीतर स्थित हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैग्नेटिज्म-आईआईजी), जिसके वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और उसके प्लाज्मा वातावरण की खोज की थी, ने अपने फोकस क्षेत्रों का विस्तार करते हुए ग्रहीय अंतरिक्ष प्लाज्मा के अध्ययन क्षेत्र में भी प्रवेश किया। सी नायक, ई यिजित, बी रेम्या, जे बुलुसु, एस देवानंदन, एस सिंह और एपी डिमरी, पी पाध्ये ने इस बात की गहन जांच की कि मंगल का निर्बल क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्र इसके आयनमंडल को कैसे नियंत्रित करता है और पाया कि दिन के समय, क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्र दक्षिणी गोलार्ध में आयनमंडल को दृढ़ता से नियंत्रित करते हैं और ऐसा नियंत्रण आम तौर पर उत्तरी गोलार्ध की तुलना में बहुत प्रबल होता है। हालाँकि, रात के समय, क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्र आयनमंडल पर अपना नियंत्रण खो देते हैं और इसलिए गोलार्ध की विषमता खो जाती है।

वैज्ञानिकों ने देखा कि इसके आयनमंडल पर क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्रों का दिन के समय नियंत्रण सूर्य-मंगल की दूरी (मौसमों) से स्वतंत्र है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: स्पेस फिजिक्स में प्रकाशित हुआ था।

यह अध्ययन इलेक्ट्रॉन घनत्व (डेन्सिटी) और चुंबकीय क्षेत्र के लगभग 8 वर्षों के मंगल के वातावरण एवं अस्थिर विकास (मार्स एटमॉस्फियर एंड वोलेटाइल इवोल्यूशन – एमएवीईएन) उपग्रह के इन-सीटू डेटा का उपयोग करके किया गया था ताकि यह जांच की जा सके कि क्रस्टल चुंबकीय क्षेत्र मंगल ग्रह के आयनमंडल को कैसे प्रभावित करते हैं। एमएवीईएन नासा (एनएएसए) का उपग्रह है जो लगभग 2014 से मंगल ग्रह की परिक्रमा कर रहा है।

आईआईजी वैज्ञानिकों का यह अध्ययन उस ज्ञान को बढ़ाने की दिशा में एक ऐसा कदम है जो भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में सहायता कर सकता है।

अक्षांश और ऊंचाई के आधार पर दक्षिणी गोलार्ध (सदर्न हेमिस्फेयर-एसएच) और उत्तरी गोलार्ध (नॉर्दर्न हेमिस्फेयर-एनएच) के इलेक्ट्रॉन घनत्व (एनई) के अनुपात में भिन्नता के संदर्भ में गोलार्ध की विषमता (ऐसीमेट्री)। यह एसएच अक्षांश में एन और एनएच अक्षांश में एनई (ne) के अनुपात को दर्शाता है। बाएँ और दाएँ पैनल रात और दिन की स्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्णकूट (कलर कोड) लॉग10 पैमाने में प्रत्येक 5 किमी ऊंचाई और 10° अक्षांश क्षेत्र (बिन) में अनुपात दिखाता है। श्वेत (व्हाईट) रिक्त स्थान डेटा अंतर का प्रतिनिधित्व करते हैं।(साभारPIB)

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