(प्रयागराज UP)10नवम्बर,2024.
देवासुर संग्राम में जिससे सुमेरु पर्वत की मथानी को लपेट कर समुद्र को मथा गया था, वह रस्सी नागवासुकि के रूप में इस महाकुंभ में देश-दुनिया के सनातनधर्मियों-जिज्ञासुओं के लिए यादगार बनेगी। पौराणिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवताओं-असुरों ने नागवासुकि के जरिये समुद्र को मथकर 14 रत्नों की प्राप्ति की थी।
इसी मंथन से निकले 14वें रत्न अमृत कलश की छीना-झपटी में संगम समेत चार स्थानों पर गिरीं अमृत बूंदें ही बाद में सनातनधर्मियों के सबसे बड़े सांस्कृतिक-आध्यात्मिक समागम के रूप में महाकुंभ मेले की वजह बन गई।इस महाकुंभ में दुनिया नागवासुकि भगवान के दर्शन नए रूप-रंग में करेगी। राजस्थानी लाल पत्थरों की नक्काशी से इस मंदिर को तराशा जा रहा है। 10वीं सदी में बेसर शैली में इस मंदिर का चुनार के बलुआ पत्थरों से निर्माण कराया गया था।
महाकुंभ को दिव्य, भव्य और नव्य बनाने में संगमनगरी के पंचम नायक कहे जाने वाले नागवासुकि की नक्काशी भी खास होगी। कसौटी के पत्थर से तैयार नागवासुकि की प्रतिमाएं हर किसी का मन मोहेंगी। इसी मंदिर परिसर में असि माधव को भी नव्यता प्रदान की जा रही है। पर्यटन विभाग की इस योजना को सीएम योगी ने 10 दिसंबर तक मूर्तरूप देने का निर्देश दिया है। नागवासुकि मंदिर के पुजारी पं.श्याम बिहारी मिश्र बताते हैं कि समुद्र मंथन के बाद सुमेरु पर्वत की रगड़ से नागवासुकि लहूलुहान हो गए थे। भगवान विष्णु के कहने पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह विश्राम किया था। जनधारणा है कि नागवासुकि के दर्शन के बिना तीर्थराज प्रयाग की यात्रा पूरी नहीं हो पाती(साभार एजेंसी)