(गोरखपुर ,UP)16जून,2025.
गोरखपुर स्थित मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMUT) शीघ्र ही अपना उपग्रह बनाएगा। साथ ही इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की मदद से अंतरिक्ष में भेजेगा।इसके लिए विश्वविद्यालय ने तैयारी शुरू कर दी है। विश्वविद्यालय ने इस काम के लिए विभिन्न विभागों के शिक्षकों की एक टीम तैयार की है।टीम का इंचार्ज इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के डॉ. विजय कुमार वर्मा को बनाया गया है।
डॉ. विजय कुमार वर्मा इसरो में काम कर चुके हैं, जिससे उनके पूर्व अनुभव का लाभ टीम को मिलेगा. इस टीम में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. प्रतीक, डॉ. प्रज्ञेय कुमार कौशिक, डॉ. शलभ कुमार मिश्र, कंप्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. एसपी मौर्य, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. दीपेश कुमार मिश्र और सिविल इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. रवि प्रकाश त्रिपाठी को रखा गया है।
उपग्रह क्यूबसैट नैनोसैटेलाइट श्रेणी का होगा : जनसंपर्क अधिकारी डॉ. अभिजीत मिश्र ने बताया, विश्वविद्यालय की टीम जो उपग्रह तैयार करेगी वह क्यूबसैट नैनोसैटेलाइट श्रेणी का होगा. क्यूबसैट नैनो उपग्रहों की एक श्रेणी है जो छोटे घन आकार (आमतौर पर 10 सेमी x 10 सेमी x 10 सेमी, जिसे वन यू के रूप में जाना जाता है) का उपयोग करता है।इन्हें अक्सर बड़े अंतरिक्ष यान के साथ शैक्षिक, अनुसंधान या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए लॉन्च किया जाता है।
उन्होंने बताया, क्यूबसैट की यह विशेषता होती है कि वे कम लागत में तैयार हो जाते हैं और उन्हें कम समय में डेवलप किया जा सकता है. MMMU जो उपग्रह तैयार कर रहा है उसका संभावित आकार 10x10x30 सेंटीमीटर होगा और उसका वजन 10 किलोग्राम से कम रखा जाएगा। इसे बनाने में लगभग एक करोड़ रुपए की लागत आएगी।
पर्यावरण की मिलेगी जानकारी : डॉ. अभिजीत मिश्र ने बताया, इस उपग्रह में उच्च क्षमता का एक मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरा लगा होगा और इसके साथ ही पर्यावरणीय सेंसर लगे होंगे। उपग्रह में लगे पर्यावरणीय सेंसर तापमान, आर्द्रता, ग्रेडिएंट, बाढ़, वायु गुणवत्ता, मौसमी बदलाव आदि की जानकारी देंगे। उपग्रह को लोअर अर्थ ऑर्बिट (पृथ्वी से लगभग 300 से 400 किलोमीटर की ऊंचाई) में स्थापित करने की योजना है।
लोवर अर्थ ऑर्बिट में स्थापित हो जाने के बाद यह सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग, बाढ़ के पैटर्न, नदियों की धारा के पैटर्न, मौसमी बदलावों विशेषकर पूर्वांचल के मौसमी बदलावों की जानकारी देगा। उपग्रह तैयार करने के लिए विश्वविद्यालय में प्रयोगशाला के रूप में एक क्लीन रूम की स्थापना की जाएगी। इसी क्लीन रूम में सैटेलाइट तैयार किया जाएगा।
MMMUT में बनेगा छोटा स्टेशन : लॉन्चिंग तक इसरो के ग्राउंड स्टेशन से इसे कंट्रोल किया जाएगा। अंतरिक्ष में स्थापित हो जाने के बाद सैटेलाइट से संपर्क बनाए रखने और डेटा प्राप्त करने के लिए MMMUT में ही एक छोटा ग्राउंड स्टेशन स्थापित होगा. सैटेलाइट बनाने और उसके लॉन्चिंग के लिए विश्वविद्यालय की टीम इसरो के संपर्क में है। जैसे ही इसरो से औपचारिक स्वीकृति मिलती है, सैटेलाइट बनाने की दिशा में काम शुरू हो जाएगा।
डॉ. अभिजीत मिश्र ने बताया, विश्वविद्यालय की योजना केवल अपना सैटेलाइट बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिशा में महत्वपूर्ण अध्ययन और शोध केंद्र के रूप में स्थापित होने की भी है. इसलिए इस वर्ष से विश्वविद्यालय में बीटेक में स्पेस टेक्नोलॉजी (अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी) में माइनर डिग्री शुरू होगी।शैक्षणिक सत्र 2026-27 से इंटेलिजेंट एवियानिक्स एंड स्पेस रोबोटिक्स में एमटेक पाठ्यक्रम भी शुरू करने की योजना है।(साभार एजेंसी)