(वाराणसी ,UP) 23जून,2025.
काशी के केदारखंड स्थित माता कामाख्या मंदिर में 22 जून से अम्बुवाची पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व देवी सती के 51 शक्तिपीठों में एक गुवाहाटी के कामाख्या देवी मंदिर से जुड़ा है।मान्यता है कि देवी सती के जब 51 टुकड़े हुए थे, तो कामाख्या में योनि भाग गिरा था।
यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं एक कुंड है, जो हमेशा फूलों से ढका रहता है. इस मंदिर में सती की योनि की पूजा होती है. आज भी देवी रजस्वला होती हैं, यानी कि उन्हें मासिक धर्म (पीरियड्स) आते हैं. जिसको लेकर वार्षिक अम्बुवाची पर्व मनाया जाता है।
मंदिर में रखे सफेद कपड़े लाल हो जाते हैं, जिसको प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.,ये कपड़े सिद्धि प्राप्ति एवं तांत्रिक विद्या में सफलता पाने में सफलता दिलाती हैं।
तीन दिन तक बंद रहता है मंदिर का कपाट:
काशी में कामाख्या देवी का प्रतिरूप स्थापित है. जिसका वर्णन लिंग पुराण एवं भविष्य पुराण में भी है।मंदिर के पुजारी आचार्य रमेश चंद्र ने बताया कि ये मंदिर बहुत पुराना है, इसका वर्णन त्रेता युग में मिलता है।जब काशी में अन्नपूर्णा मंदिर स्थापित हुआ था, तभी राजा यक्ष ने मां कामाख्या के मंदिर का निर्माण कराया था।
असम के गुवाहाटी स्थित देवी कामाख्या मंदिर की तर्ज पर काशी के मंदिर में मां का रजस्वला होता है।जो हर साल मनाया जाता है. इस साल चार दिनों 22 से 26 जून तक अम्बुवाची योग पर्व मनाया जाएगा।
वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बुवाची विश्व के सभी तांत्रिकों एवं सिद्ध पुरुषों के लिए एक वरदान है।
यह एक प्रचलित धारणा है की देवी कामाख्या मानसिक धर्म चक्र के माध्यम से तीन दिनों तक गुजरती है। इस दौरान तीन दिनों का देवी कामाख्या के कपाट भक्तों के लिए बंद रहते हैं।इस दौरान पुरुषों के प्रवेश की अनुमति नहीं होती है. 26 तारीख को मां को गंगा जल, गुलाब जल एवं औषधि से अभिषेक कराके पूजा पाठ शुरू होती है।
पुजारी आचार्य रमेश चंद्र ने बताया, चौथे दिन देवी माता के कपाट खुलते हैं। रजस्वला होने के कारण सफेद कपड़े लाल हो जाते हैं। लाल कपड़ों को प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है. जो बहुत ही शुभ माना जाता है। कामाख्या माता तांत्रिक देवी कहीं जाती हैं. इनके दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। (साभार एजेंसी)