(वाराणसी UP)22दिसम्बर,2024.
जापान की दो कंपनियों ने वन विभाग के सहयोग से जिले के तीन गांवों में बैंबू चारकोल बनाने का काम शुरू कर दिया है। चारकोल के प्रयोग से स्थानीय लोगों को कृषि उपज बढ़ने के साथ ही शुद्ध पानी भी मिलेगा। चार साल के लिए भारत और जापान सरकार में समझौता हुआ है। भारत में पहली बार वन आधारित गंगा अनुकूल आजीविका परियोजना के तहत काम हो रहा है। वाराणसी के रमना, चांदपुर और मुस्तफाबाद में चार साल तक यह काम किया जाएगा।
जापान की कंपनी ओइस्का इंटरनेशनल और जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी काम कर रही हैं। जापानी दूतावास के शुन होसाका ने भी बीते दिनों भारत और जापान के मित्रवत संबंधों की बात कही थी।
उक्त परियोजना के इंचार्ज रणजीत सिंह चौहान ने बताया कि नदी पर्यावरण के अनुकूल प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रोजगार दिलाने की पहल की गई है। साथ ही किसानों की फसलों के विपणन का उपयोग करने वाली कृषि प्रौद्योगिकी की भी शुरुआत हुई। गंगा के किनारे रहने वाले लोग बांस का प्रभावी उपयोग कर सकते हैं। बांस के चारकोल पर्यावरण के अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने में भी सहायक होंगे।
जापान के कृषि विशेषज्ञ अकियो चिकुडा ने किसानों को बताया कि अच्छी मिट्टी लिए शारीरिक, रासायनिक और जैविक संतुलन बहुत जरूरी है। अच्छी मिट्टी बनाए रखने के लिए बांस का कोयला प्रभावी है। इसके इस्तेमाल से रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी, मिट्टी के पोषक तत्व बने रहेंगे। वे जैविक खाद बनाने की विधि किसानों के साथ साझा करने के साथ खाद बनाकर भी दिखा रहे हैं।
क्या है बैंबू चारकोल:
ब्लैक डायमंड के नाम से मशहूर बांस से बनने वाला चारकोल पानी को साफ करने के साथ-साथ चेहरे के लिए भी फायदेमंद है। यह हवा में घुले प्रदूषित तत्वों को चेहरे पर टिकने नहीं देता। साथ ही भीषण गर्मी में भी इसकी परत त्वचा का बचाव करती है। बांस चारकोल प्राकृतिक रूप से कैल्शियम, मैग्नीशियम, एसीडिक एसिड, हाइड्रॉक्सिल बैंजीन आदि से युक्त होता है। रमना, चांदपुर और मुस्तफाबाद में किसानों को जापान की दोनों कंपनियां बैंबू चारकोल बनाकर देंगी। किसान इसे खेतों में डालेंगे और पानी साफ करने में इसका प्रयोग करेंगे।
जापान की दो कंपनी और वन विभाग के सहयोग से तीन गांवों में बैंबू चारकोल बनाने का काम शुरू हुआ है। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और पानी भी साफ किया जा सकेगा(साभार एजेंसी)