जूना अखाड़े के नगर प्रवेश के साथ महाकुंभ का शंखनाद,सुसज्जित रथ-बग्घी पर सवार होकर निकले साधु-संत

UP / Uttarakhand

(प्रयागराज UP)04नवंबर,2024.

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के साधु-संतों ने जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरि के नेतृत्व में नगर प्रवेश किया। सभी साधु संत सुसज्जित बग्घी, घोड़े और रथों पर सवार होकर निकले। यात्रा का जगह-जगह स्वागत किया गया।

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा/ हृदय राखि कौसलपुर राजा…। संत तुलसी दास की रचित राम चरित मानस की इस चौपाई के अनुसार किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत यदि अपने हृदय में प्रभु श्रीराम और माता सीता को रख कर करते हैं, तो वह अवश्य लोकमंगलकारी हो जाता है। संन्यासियों के सबसे बड़े पंच दशनाम जूना अखाड़े के संतों ने रविवार को मानस की इसी चौपाई के सूक्त वाक्य के साथ महाकुंभ-2025 के लिए नौ किमी लंबी शोभायात्रा निकालकर नगर प्रवेश किया।

सुसज्जित रथों, बग्घियों और घोड़ों पर सवार को संन्यासी बाजे गाजे के साथ निकले तो वह झलक पाने के लिए सड़कों की पटरियों से लेकर छतों-बारजों तक बच्चों-महिलाओं, युवाओं की भीड़ लग गई। इस दौरान यमुना तट परमौज गिरि मंदिर में मां यमुना और धर्मराज का सविधि पूजन तक महाकुंभ का औपचारिक शंखनाद कर दिया गया।

रमता पंच, श्रीपंच की अगुवाई में जूना अखाड़े के देवता को लेकर संतों का कारवां दोपहर एक बजे के बाद रामापुर स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर परिसर से निकला। मेला प्रशासन के अफसरों की स्वागत के बाद अखाड़ा परिषद के महामंत्री और जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि के नेतृत्व में रथों, बग्घियों और घोड़ों के कारवां के साथ महामंडलेश्वरों, पीठाधीश्वरों, महंतों की सवारियां निकलने लगीं। हर हर महादेव के जयकारे गूंजने लगे। इसी के साथ जूना अखाड़े के संतों ने महाकुंभ -2025के भव्य व दिव्य आगाज का एलान कर दिया। अंदावा चौराहे से लेकर झूंसी होते हुए शास्त्री सेतु तक सड़क की दोनों पटरियों पर श्रद्धालु नगर प्रवेश शोभायात्रा के स्वागत में जगह-जगह पुष्पवर्षा करते रहे। कुंभ महापर्व के दौरान कोई विघ्न ना आए और विश्वस्तरीय मेला ऐतिहासिक रूप से सफल हो, इसके लिए सभी देवी-देवताओं की पूजा भी की गई। इस यात्रा में 10 रथों पर चांदी के सिंहासनों पर जगदगुरु, महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत विराजमान थे। नगर प्रवेश शोभायात्रा में सबसे आगे देवता बाला स्वरूप दत्त भगवान थे।

तन पर भस्मी गले में माला,हाथ में त्रिशूल और भाला लेकर निकले नागा संन्यासी:

तन पर भस्मी लपेटे, गले में तुलसी-रुद्राक्ष और स्फटिक की मालाओं के कंठाहार धारण किए नागाओं के हाथ में त्रिशूल, तलवार और भाला सुशोभित हुए तो वह झलक पाने के लिए राहों में टकटकी लग गई। शाही अंदाज में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर, पीठाधीश्वर और संन्यसिनियों के रथ मौजगिरि पहुंचे तो ढोल-नगाड़ों के साथ पूल बरसाकर उनका स्वागत किया गया।

इसी के साथ महाकुंभ के विघ्न निवारण के लिए शनिदेव, मां यमुना और धर्मराज का सविधि पूजन कर महीने भर के लिए जूना अखाड़े के देवता को प्रतिष्ठापित किया गया। अब माह भर बाद यहीं से छावनी प्रवेश के साथ ही संगम की रेती पर जूना अखाड़े की धर्मध्वजा निशान के रूप में स्थापित की जाएगी।

इसी के साथ महाकुंभ के विघ्न निवारण के लिए शनिदेव, मां यमुना और धर्मराज का सविधि पूजन कर महीने भर के लिए जूना अखाड़े के देवता को प्रतिष्ठापित किया गया। अब माह भर बाद यहीं से छावनी प्रवेश के साथ ही संगम की रेती पर जूना अखाड़े की धर्मध्वजा निशान के रूप में स्थापित की जाएगी।

अपर मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी,मेला एसडीएम और नायब तहसीलदार के अलावा पुलिस अफसरों ने माला पहनाकर जूना अखाड़े के प्रमुख पदाधिकारियों का स्वागत किया। महाकुंभ में विघ्न बाधा न आने पाए, इसके लिए यमुना बैंक रोड स्थित मौज गिरि मंदिर परिसर पहुंचने पर शनिदेव, यमुना व धर्मराज का पूजन किया गया। नगर प्रवेश के लिए निकले जूना अखाड़े के इस कारवां में संन्यासियों के निराले अंदाज देखते बने।

सिंहासन पर सवार होकर निकले साधु-संत:
छत्र, चंवर के साथ सिंहासनारूढ़ संत भी इस शोभायात्रा में शामिल हुए तो भस्म-भभूत के साथ तलवार, भाला और त्रिशूल धारण किए साधु भी हर किसी का बरबस ध्यान खींचते रहे। काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगदगुरु नरेंद्रानंद सरस्वती, नगर देवता वेणी माधव की पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर वैभव गिरि, जगदगुरु महेंद्रानंद गिरि,जगदगुरु भुवनेश्वरीनंद गिरि, रमता पंच के श्रीमहंत मोहन गिरि, महंत निरंजन भारती, महंत रामचंद्र गिरि,महंत दूध पुरी, जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय सभापति महंत प्रेम गिरि,दूधेश्वर पीठाधीश्वर और जूना अखाडा के प्रवक्ता महंत नारायण गिरि,पूर्व सभापति महंत उमा शंकर भारती, महंत शैलेंद्र गिरि, महंत महेश पुरी, थानापति मुन्ना गिरि, थानापति कुशपुरी,थानापति धर्मेंद्र गिरि,महंत द्विजपुरी,महंत मोहन गिरि,महंत कमल भारती,महामंडलेश्वर विद्या चेतन सरस्वती, आचार्य महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा लक्ष्मीकांत त्रिपाठी, महामंडलेश्वर पवित्रानंद सरस्वती,महंत विद्यानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर रवि चित्र महराज ने नगर प्रवेश यात्रा में हिस्सा लिया।

महापौर,कुंभमेलाधिकारी ने किया स्वागत:
राम मंदिर में महापौर गणेश केसरवानी ने जूना अखाड़े के संन्यासियों का दिव्य-भव्य स्वागत किया। कुंभ मेलाधिकारी विजय किरण आनंद, एडीएम दयानंद, नायब तहसीलदार शिवशंकर पटेल, चंडिका त्रिपाठी ने भी संतों का जोरदार स्वागत किया। दूधेश्वर पीठाधीश्वर और पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता महंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि नगर प्रवेश यात्रा व देवी-देवताओं के पूजन के साथ कुंभ महापर्व का आगाज हो गया है। अब 26 फरवरी तक कुंभ महापर्व में देश-विदेश के लाखों संत जुटेंगे और देश ही नहीं पूरे विश्व का मार्गदर्शन करेंगे। विश्व पर संकट है और कई देशों के बीच युद्ध चल रहा है। ऐसे में प्रयागराज कंभ महापर्व व उसमें पधारने वाले संत युद्ध को खत्म करने व विश्व में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

महीने भर यमुना तट पर जप-तप करेंगे नागा संन्यासी:
प्रयागराज। जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि ने नगर प्रवेश शोभायात्रा के महत्व पर रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि नगर प्रवेश के साथ ही दिव्य-भव्य महाकुंभ के लिए देश-दुनिया से संतों के पहुंचने का सिलसिला आरंभ हो गया है। अब मौजगिरि पर महीने भर के लिए जूना अखाड़े का पड़ाव आरंभ हो गया है। पड़ाव डालकर यहां संत महाकुंभ के लिए प्रवास करेंगे। नगर प्रवेश के साथ ही कुंभ मेले की गतिविधियां शुरू हो गई हैं। यहीं से छावनी प्रवेश के लिए महीने भर बाद कारवां निकलेगा।

पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होगी महाकुंभ की शुरुआत:
13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के प्रथम स्नान के साथ महाकुंभ की शुरुआत होगी। महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन होगा। जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर महंत वैभव गिरि ने महाकुंभ के आयोजन के पीछे के पौराणिक आख्यान को भी साझा किया। बताया जाता है कि जब कभी राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तब इससे निकले रत्नों को आपस में बांटने का फैसला किया गया था।रत्न को दोनों ने आपस में बांट लिए, लेकिन अमृत को लेकर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। ऐसी स्थिति में अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत का पात्र गरुड़ को दे दिया। राक्षसों ने जब देखा कि अमृत गरुड़ के पास है, तो उससे छीनने की कोशिश की। उसी दौरान अमृत की बूंदें संगम पर गिरी थीं। उसी परंपरा को लेकर संगम पर 12 वर्ष के बाद महाकुंभ स्नान के लिए विश्व उमड़ता है।अमृत की कुछ बूंदें जिन चार जगहों पर गिरने की मान्यता है उसमें प्रयागराज के अलावा हरिद्वार, उज्जैन और नासिक भी शामिल हैं(साभार एजेंसी)

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