अब चावल,गेहूं,मक्का और नमक से बनेगी बिजली,वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट में भी मदद

UP / Uttarakhand

(वाराणसी UP)17दिसम्बर,2024.

बीएचयू की महिला प्रोफेसर को कम लागत वाली माइक्रोबियल (सूक्ष्म जीवों) फ्यूल सेल बनाने के लिए पेटेंट मिला है। महिला महाविद्यालय के भौतिकी विभाग की प्रोफेसर नीलम श्रीवास्तव ने गेहूं, मक्का और चावल के स्टार्च को नमक के साथ मिलाकर इसे तैयार किया है। इस सेल से बिजली भी बनाई जा सकती है।

इसमें इकेक्ट्रो-केमिकल गुण देखा गया है। सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट जल को साफ करने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन भी कहते हैं, जो कि प्रोटॉन-संवाहक पॉलिमर झिल्ली की तरह होता है, जिसे ईंधन सेल की तरह से इस्तेमाल किया जाता है।

इसकी खोज नीलम श्रीवास्तव और सीएसआईआर-भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद से डॉ. एस वेंकट मोहन ने की। दोनों को संयुक्त तौर पर पेटेंट मिला है। रिसर्च और पेटेंट में बीएचयू के शोध छात्रों में डॉ. मनिंद्र कुमार, डॉ. जगदीश कुमार चौहान, डॉ. माधवी यादव और सीएसआईआर-आईआईसीटी हैदराबाद के डॉ. ओमप्रकाश सरकार और डॉ. ए नरेश कुमार शामिल थे।

इको फ्रेंडली और सस्ता मेंब्रेन:
प्रो. नीलम श्रीवास्तव ने बताया कि माइक्रोबियल फ्यूल सेल एक तरह की ग्रीन एनर्जी है। इसमें बैक्टीरिया द्वारा जैविक सामग्री को नष्ट कर ऊर्जा पैदा की जा सकती है। हालांकि इस तकनीक को वास्तविक जीवन में बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए एक बड़ी चुनौती मेंब्रेन सामग्री की बड़ी लागत रही है।

वर्तमान में नैफियॉन मेंब्रेन महंगा और पर्यावरण के लिए हानिकारक है। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि इस तकनीक में महंगे नैफियॉन मेंब्रेन के बजाय इको फ्रेंडली और सस्ता मेंब्रेन इस्तेमाल किया गया है। चावल, मक्का और गेहूं का कोई नुकसान नहीं है। ये आसानी से डीकंपोज भी हो सकता है।

हैदराबाद की लैब में हुआ परीक्षण:
नए मेंब्रेन का परीक्षण सीएसआईआर-आईआईसीटी हैदराबाद में डॉ. एस. वेंकट मोहन की टीम द्वारा किया गया है। प्रारंभिक परिणामों से पता चलता है कि यह मेंब्रेन माइक्रोबियल फ्यूल सेल को इलेक्ट्रिक केमिकल प्रॉसेस में बेहतर काम कर रहा है। इससे गंदे पानी को साफ करने के साथ ही ऊर्जा उत्पादन की संभावनाएं दिख रहीं हैं। विकासशील देशों में में इसका काफी फायदा होगा।

डॉ. एस. वेंकट मोहन माइक्रोबियल फ्यूल सेल, जैव ऊर्जा और जल उपचार तकनीकों के विशेषज्ञ हैं। वह सीएसआईआर में अत्याधुनिक शोध का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य ऊर्जा पुनः प्राप्ति और जल उपचार के लिए किफायती और प्रभावी समाधान विकसित करना है(साभार एजेंसी)

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