(नई दिल्ली ) 22जून,2025.
आंध्र प्रदेश के छोटे से शहर पलकोल्लू में जन्मी जान्हवी डांगेती की कहानी महज अंतरिक्ष की नहीं है, यह कहानी है हौसले, सपनों और महिला सशक्तिकरण की। वहां जहां ज़्यादातर लड़कियां इंजीनियरिंग या मेडिकल की सीमाओं में अपने सपनों को समेट देती हैं, जान्हवी ने आकाश से भी आगे चांद को अपना लक्ष्य बनाया। जान्हवी डांगेती का सफर उन सभी लड़कियों के लिए प्रेरणा है जो सपने तो देखती हैं, लेकिन माहौल, सीमाओं या आत्मविश्वास की कमी के कारण कदम नहीं बढ़ा पातीं।
फ्लोरिडा के एक स्पेस संस्थान में एक अनुभवी एस्ट्रोनाॅट ने जान्हवी की तुलना कल्पना चावला से करते हुए कहा था,
“तुम्हारे अंदर मुझे छोटी कल्पना चावला दिखती है।”
अंतरिक्ष पर जाने का सपना:
जान्हवी आंध्र प्रदेश के पलकोल्लु शहर की रहने वाली हैं। उन्होंने पंजाब से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की है। जान्हवी ने सिर्फ 11 साल की उम्र में NASA के बारे में सुना और तभी तय कर लिया कि उनका सपना अंतरिक्ष में उड़ना है। लेकिन असली प्रेरणा मिली उनकी दादी की कहानियों से, जो तारे गिनने से आगे उन्हें तारों तक पहुंचने की ओर ले गई।
25 किमी रोज साइकिल चलाती थीं जान्हवी:
अपने सपने को पूरा करने के लिए जब जान्हवी को पता चला कि एस्ट्रोनॉट्स को जीरो ग्रैविटी की ट्रेनिंग स्कूबा डाइविंग से मिलती है। उन्होंने हर दिन 25 किमी साइकिल चलाकर स्विमिंग पूल जाना शुरू किया। जल्द ही वो भारत की सबसे कम उम्र की एडवांस स्कूबा डाइवर बन गईं। यह उनकी लगन और हिम्मत का प्रतीक है।
NASA पहुंची भारतीय छात्रा:
जान्हवी ने NASA के 10 दिवसीय छात्र कार्यक्रम में भाग लिया। ऐसा करने वाली पहली भारतीय बनकर उन्होंने एक बड़ी उपलब्धि अपने नाम की। उस समय जान्हवी की आंखों में आंसू थे, क्योंकि वह जानती थीं कि अब आसमान उनसे दूर नहीं।
एनालॉग मून मिशन की हिस्सा बनीं:
2022 में उन्हें पोलैंड में हुए एनालॉग मून मिशन के लिए चुना गया, जहां चांद जैसी परिस्थितियों में जीवन की परीक्षा ली गई। इस मिशन ने जान्हवी को अपने सपने के और नजदीक पहुंचा दिया।
ऐतिहासिक लो-अर्थ ऑर्बिट मिशन का हिस्सा:
जान्हवी 2029 में होने वाले टाइटन्स स्पेस के लिए पहले लो अर्थ आॅर्बिट (LEO) मिशन की हिस्सा होंगी। इस मिशन में वह पृथ्वी की दो बार परिक्रमा करेंगी। साथ ही 3 घंटे ज़ीरो ग्रैविटी में तैरेंगी और एक ही दिन में दो सूर्योदय और दो सूर्यास्त देखेंगी(साभार एजेंसी)