आलू का छिलका करेगा पर्यावरण की रक्षा,आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं को मिली कामयाबी

UP / Uttarakhand

(वाराणसी UP)02जनवरी,2025.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू) के शोधकर्ताओं ने आलू के छिलके के अपशिष्ट से जैविक एथेनॉल उत्पादन के लिए एक अभिनव विधि का शोध किया है। यह “अपशिष्ट से संपत्ति” की पहल न केवल खाद्य अपशिष्ट को कम करने के लिए एक मार्ग प्रस्तुत करती है, बल्कि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान भी करती है।

यह शोध डॉ. अभिषेक सुरेश धोबले, स्कूल ऑफ बायोकैमिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर, और एम.टेक. छात्र उन्नति गुप्ता द्वारा किया गया है, जो आलू के छिलके के अपशिष्ट का उपयोग जैविक एथेनॉल उत्पादन के लिए एक कच्चे माल के रूप में करने की संभावना की खोज कर रहे हैं।

जैविक एथेनॉल, एक नवीनीकरणीय बायोफ्यूल, देश के कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने और स्वच्छ, टिकाऊ ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अभिनव प्रक्रिया खाद्य अपशिष्ट की समस्या और टिकाऊ ईंधन स्रोतों की बढ़ती आवश्यकता दोनों का समाधान करती है।

डॉ. अभिषेक सुरेश धोबले ने बताया कि पेट्रोल में एथेनॉल का मिश्रण 2014 में 1.53% से बढ़कर 2024 में 15% हो गया है, और 2025 तक इसे 20% तक पहुंचाने का लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त, डीजल में 15% एथेनॉल के मिश्रण की व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने के लिए भी शोध किया जा रहा है।

ये प्रयास सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य भारत के ₹22 लाख करोड़ के वार्षिक जीवाश्म ईंधन आयात बिल को कम करना है, खासकर वैश्विक भौगोलिक अस्थिरताओं के मद्देनजर।

उन्होंने यह भी बताया कि भारत में औसतन 56 मिलियन टन आलू का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग 8-10% (लगभग 5 मिलियन टन) चिप्स, फ्राई और सुखाए हुए उत्पादों के रूप में प्रसंस्कृत किया जाता है।

हालांकि, आलू उत्पादन में बाद की फसल में काफी हानि होती है, जो कि 20-25% (11-14 मिलियन टन) तक हो सकती है, जिसका मुख्य कारण अपर्याप्त भंडारण सुविधाएं, अव्यक्त परिवहन और गलत तरीके से हैंडलिंग करना है।

डॉ. धोबले ने बताया कि यह तरीका भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में योगदान देने के लिए एक व्यावहारिक और स्केलेबल समाधान प्रस्तुत करता है। आईआईटी (BHU) में टिकाऊ जैविक एथेनॉल उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत और दुनिया के ऊर्जा भविष्य को आकार देने के लिए किए जा रहे शोध में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।

संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर अमित पत्रा ने डॉ. अभिषेक सुरेश धोबले और उनकी टीम को इस अभिनव पहल के लिए बधाई दी और कहा कि यह शोध आईआईटी (BHU) की वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के समर्थन में cutting-edge समाधान को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

साथ ही संस्थान के पर्यावरणीय शोध और नवाचार में अग्रणी भूमिका को भी मजबूत करता है। यह परियोजना न केवल एक स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य बनाने का उद्देश्य रखती है, बल्कि बड़े पैमाने पर खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या का समाधान भी करती है, जो पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए समग्र लाभ प्रदान करती है(साभार एजेंसी)

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