(नई दिल्ली)07जुलाई,2025.
दुनियाभर में हर रोज दुर्घटनाओं या आपातकालीन स्थिति में जरूरी खून की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो जाती है। आंकड़ों से पता चलता है कि हर साल ऐसे लाखों मरीज सिर्फ इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि वक्त पर उन्हें खून नहीं मिल पाता।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की साल 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल दुनिया में लगभग 118.5 मिलियन यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन जरूरत के मुकाबले मात्र 87 मिलियन यूनिट रक्त एकत्र हो पाता है।
जनवरी 2024 में अमेरिकन रेड क्रॉस ने चिंता जताई कि उसे आपातकालीन रक्त की कमी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले 20 वर्षों में रक्त देने वाले लोगों की संख्या सबसे कम है। इसी तरह से भारत में हर दिन लगभग 12,000 मरीज समय पर रक्त न मिल पाने के कारण मर जाते हैं। देश में सालाना 15 मिलियन (1.5 करोड़) यूनिट रक्त की आवश्यकता है हालांकि ब्लड डोनेशन कैंप और अन्य माध्यमों से केवल 10 मिलियन (एक करोड़) यूनिट ही प्राप्त हो पाती है।
विशेषज्ञों की टीम ने अब इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। जापानी वैज्ञानिकों ने रक्त की इस कमी को दूर करने के लिए कृत्रिम रक्त यानी आर्टिफिशियल तरह का खून विकसित कर लिया है।
ब्लड ग्रुप की चिंता नहीं, शेल्फ लाइफ भी बेहतर
रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे असली रक्त के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इतना ही नहीं सबसे खास बात ये है कि इसका उपयोग किसी भी ब्लड ग्रुप के लिए किया जा सकता है और इसे बिना रेफ्रिजरेशन के लंबे समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता है।
विशेषज्ञों का मामला है कि यह आपातकालीन चिकित्सा के दौरान सामने आने वाली सबसे बड़ी चुनौती को दूर करने और लोगों की जान बचाने में काफी मददगार हो सकती है।
खबरों के मुताबिक जापान स्थित नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम इस साल एक क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने जा रही है, जिसमें परीक्षण किया जाएगा कि क्या सामान्य रूप से फेंक दिए जाने वाले एक्सपायर हो चुके रक्त को कृत्रिम लाल रक्त कोशिकाओं में बदलकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है? इसके अलावा अब तक किए गए शुरुआती ट्रायल की प्रभाविकता की भी जांच की जानी है।
यदि परीक्षण सफल होते हैं, तो जापान 2030 तक वास्तविक दुनिया की चिकित्सा प्रणालियों में कृत्रिम रक्त का उपयोग करने वाला पहला देश बन सकता है।
दुष्प्रभाव और प्रभाविकता के लिए जांच
स्थानीय समाचार आउटलेट क्योडो न्यूज के अनुसार, नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के परीक्षण के शुरुआती चरणों में मार्च में 16 स्वस्थ वयस्कों को 100 से 400 मिलीलीटर कृत्रिम रक्त दिया गया था। इस ट्रायल के अगले चरण में उपचार की प्रभावकारिता और सुरक्षा की जांच की जानी है। फिलहाल रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि प्रतिभागियों को मार्च में कृत्रिम रक्त दिए जाने के बाद किसी भी दुष्प्रभाव का अनुभव हुआ है या नहीं?
चूंकि इस कृत्रिम रक्त में विशिष्ट मार्कर नहीं होते हैं जो आमतौर पर इसके ग्रुप को निर्धारित करते हैं (जैसे A, B, AB, या O)। ऐसे में इसे क्रॉस-मैचिंग के बिना किसी भी रोगी में सुरक्षित रूप से चढ़ाया जा सकता है। कृत्रिम रक्त वायरस-फ्री भी बताया जा रहा और दान किए गए मानव रक्त की तुलना में इसकी शेल्फ लाइफ भी बहुत लंबी होती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
इंग्लैंड के ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ बायोकेमिस्ट्री में सेल बायोलॉजी के प्रोफेसर एश टॉय कहते हैं, ह्यूमन हीमोग्लोबिन से प्राप्त कृत्रिम रक्त का उपयोग करके जापान में एक नए नैदानिक परीक्षण की शुरूआत संभावित रूप से रोमांचक कदम है। इस क्षेत्र में लंबे समय से संभावनाएं हैं, इससे पहले किए गए प्रयासों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से सुरक्षा, स्थिरता और ऑक्सीजन वितरण प्रभावकारिता को लेकर।
इस परीक्षण को न केवल यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता होगी कि कृत्रिम रक्त मनुष्यों में सुरक्षित है, बल्कि यह भी कि यह कई नैदानिक स्थितियों के तहत विश्वसनीय रूप से कार्य कर सकता है।
‘शुरुआती परिणाम आशाजनक’:
नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिरोमी साकाई ने जापान टाइम्स को एक रिपोर्ट में बताया कि जब रक्त आधान की तत्काल आवश्यकता होती है, तो हमें कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कृत्रिम लाल रक्त कोशिकाओं के साथ, रक्त प्रकारों के बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए आधान प्रक्रिया जल्दी से की जा सकती है।
यह तकनीक अभी भी नैदानिक परीक्षण के चरणों में है, लेकिन शुरुआती परिणाम आशाजनक हैं। (साभार एजेंसी)
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