(नई दिल्ली )30सितम्बर,2025.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की सीमाओं पर बदलते खतरों के जवाब में, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने आक्रामक और रक्षात्मक मानव रहित हवाई क्षमताओं का निर्माण करने के लिए मध्य प्रदेश के टेकनपुर में अपने प्रशिक्षण अकादमी में देश का पहला समर्पित ड्रोन युद्ध स्कूल स्थापित किया है।
पिछले महीने स्थापित, 40 अधिकारियों वाले इस पहले बैच ने एक सप्ताह का “ड्रोन ओरिएंटेशन” कोर्स किया, जिसमें बीएसएफ की सभी सीमाओं और सहायक प्रशिक्षण केंद्रों (एसटीसी) से कमांडेंट और सेकेंड-इन-कमांड स्तर के अधिकारी शामिल थे। वर्तमान में, 47 कर्मियों का एक दूसरा समूह गहन छह-सप्ताह के “ड्रोन कमांडो कोर्स” में नामांकित है, जिसमें अधीनस्थ अधिकारियों, सहायक उप-निरीक्षकों और कांस्टेबलों के पदों के प्रशिक्षु शामिल हैं। ड्रोन उड़ाना, रणनीति, अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) और ड्रोन से बढ़ती तस्करी और धमकी की रणनीति के बारे में स्कूल में इन कर्मियों को सिखाया जाएगा।
यह स्कूल टेकनपुर स्थित बीएसएफ अकादमी के एडीजी और निदेशक के दिमाग की उपज है।
अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) और बीएसएफ अकादमी, टेकनपुर के निदेशक शमशेर सिंह ने न्यूज़ एजेंसी को बताया कि बल को पिछले चार से पांच वर्षों से सीमा पर ड्रोन-सक्षम नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी का सामना करना पड़ रहा है और ऑपरेशन सिंदूर के बाद उन चुनौतियों ने नए रूप ले लिए हैं।
एडीजी ने कहा कि इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने, अपनी जनशक्ति को प्रशिक्षित करने और अपने बल को सुसज्जित करने के लिए हमने पिछले महीने ड्रोन युद्ध स्कूल की स्थापना की ताकि वे इन चुनौतियों का सामना कर सकें।
अधिकारी ने बताया, “स्कूल का एक बैच पहले ही स्नातक हो चुका है और वर्तमान में दूसरे बैच को प्रशिक्षण दे रहा है। यह तीन विंगों में संगठित है- उड़ान और विमानचालन, रणनीति और अनुसंधान एवं विकास। रणनीति विंग प्राथमिक फोकस है- यह आक्रामक और रक्षात्मक संचालनों को एकीकृत करता है और संयुक्त भूमिकाओं में काम करने के लिए अधिकारियों और सैनिकों को एक साथ प्रशिक्षित करता है।”
उन्होंने कहा कि ड्रोन युद्ध स्कूल में दो प्रमुख पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं-ड्रोन कमांडो और ड्रोन योद्धा पाठ्यक्रम। ड्रोन कमांडो कोर्स उन कर्मियों के लिए है, जो सीमा पर ड्रोन चलाएंगे, जिसमें उड़ान, मरम्मत, हथियारीकरण और त्वरित संयोजन शामिल हैं। कमांडो 50 सेकंड के भीतर एक राइफल को अलग कर सकता है। हम अपने कमांडो को इस तरह प्रशिक्षित करना चाहते हैं कि वह 50 सेकंड में एक ड्रोन को असेंबल कर सके।
बीएसएफ अधिकारी ने कहा कि पाठ्यक्रम को सीमा पर पिछले पांच वर्षों की घटनाओं के व्यापक विश्लेषण के बाद तैयार किया गया है, जिसमें तस्करों और शत्रुतापूर्ण तत्वों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्रौद्योगिकियों का फोरेंसिक अध्ययन भी शामिल है। उन्होंने कहा, “पाठ्यक्रम को सीमा पर पिछले पांच वर्षों की घटनाओं के व्यापक विश्लेषण के बाद तैयार किया गया है, जिसमें तस्करों और शत्रुतापूर्ण तत्वों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्रौद्योगिकियों का फोरेंसिक अध्ययन भी शामिल है।”
एडीजी शमशेर ने आगे कहा, “हमने पिछले 5 सालों में सीमा पर हुई सभी घटनाओं का विश्लेषण किया है। हमारे पास फोरेंसिक टीम विवरण हैं। हमने तकनीक का विश्लेषण किया और सीमा पर अपने अनुभव के आधार पर अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार किए।” उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रमों में ड्रोन हमलों से बचाव, दुष्ट या दुश्मन ड्रोनों को निष्क्रिय करने तथा ड्रोन गश्ती को व्यापक सीमा-प्रबंधन कार्यों में एकीकृत करने पर मॉड्यूल शामिल हैं।
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि बीएसएफ भविष्य में सीमा के संवेदनशील हिस्सों पर ड्रोन गश्त की तैनाती की योजना बना रही है। उन्होंने सुरक्षा प्रशिक्षण में व्यापक रणनीतिक बदलाव पर भी जोर देते हुए कहा, “सीमा की स्थिति बदली जाएगी। बीएसएफ साइबर युद्ध से निपटने की तैयारी जैसी तकनीक और पाठ्यक्रम तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम अपनाने के लिए तैयार है।”
एडीजी ने कहा कि नया स्कूल स्वदेशी क्षमताओं के निर्माण तथा हाइब्रिड और असममित खतरों का मुकाबला करने में सक्षम प्रौद्योगिकी-तैयार सीमा बल बनाने के प्रयासों के अनुरूप है। उन्होंने बताया कि स्कूल में ड्रोन कमांडो और ड्रोन वॉरियर जैसे प्रमुख पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं, ताकि सुरक्षा बलों को आक्रामक और रक्षात्मक ड्रोन ऑपरेशनों के लिए तैयार किया जा सके, जिसमें तेजी से ड्रोन संयोजन और ड्रोन-विरोधी उपाय शामिल हैं।
वहीं, बीएसएफ के महानिरीक्षक उमेद सिंह ने न्यूज़ एजेंसी को बताया कि ड्रोन युद्ध एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसका रूस-यूक्रेन संघर्ष में व्यापक रूप से प्रदर्शन किया गया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद, हमें पश्चिमी सीमा पार से इसी तरह के भारी ड्रोन हमलों का सामना करना पड़ा। रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में, यह आवश्यक है कि हमारी सेनाएं ड्रोन संचालन और ड्रोन-रोधी रणनीति में प्रशिक्षित और सुसज्जित हों। ड्रोन-रोधी क्षमता जटिल है और इसमें स्पूफ़र, जैमर, डिटेक्टर और सॉफ्ट-किल तथा हार्ड-किल दोनों समाधान शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि हम क्षेत्रीय संरचनाओं के अनुरूप एक एकीकृत ड्रोन-रोधी प्रणाली स्थापित करने पर काम कर रहे हैं और अपनी इकाइयों को इन प्रणालियों के प्रावधान को प्राथमिकता दे रहे हैं। इन तकनीकों पर प्रशिक्षण पहले से ही चल रहा है।(साभार एजेंसी)