गले मिलीं देशभर की संस्कृतियां

UP / Uttarakhand

(लखनऊ UP)17नवम्बर,2024.

शाम ढलते ही शनिवार को अंतरराष्ट्रीय जनजाति भागीदारी उत्सव का मंच स्थानीय संस्कृतियों से रोशन हो गया। यहां न केवल अलग-अलग राज्यों की सभ्यता पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां हुईं बल्कि विशेष पहनावों को देखने के लिए भी दर्शक उत्सुक नजर आए।

संगीत नाटक अकादमी परिसर में चल रहे उत्सव के दूसरे दिन स्थानीय कलाकारों ने भी प्रस्तुतियां दीं। जनजाति कलाकारों ने अपने साथ एक-दूसरे की संस्कृति और सभ्यता से भी परिचय प्राप्त किया। यहां अलग-अलग राज्यों की स्थानीय सभ्यता के साथ विदेशी संस्कृति की झलक भी दिखीं।

जनजाति उत्सव की प्रतिभागी: राजस्थान की कलाकार पूजा कांबड़ ने अपने समूह के साथ कांबड़ नृत्य की प्रस्तुति दीं। वे बताती हैं कि यह स्थानीय समुदाय की पहचान है। अलग-अलग राज्यों के कलाकार इस नृत्य से प्रभावित हो रहे हैं। सिक्किम की नेहा ने भी अपनी टीम के साथ सिंधि वास्तुकला से लोगों को परिचित कराया। वह बताती हैं कि यह नृत्य गुरु की तपस्या के समय किया जाता है। स्लोवाकिया के सांस्कृतिक दल ने मध्य यूरोप के पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में प्रमुख सचिव बीएल मीना ने कलाकारों को सम्मानित किया।

इन राज्यों की भी हुईं विशेष प्रस्तुतियां:
महाराष्ट्र का सांगी मुखौटा नृत्य, उत्तर प्रदेश का गरदबाजा, नगमतिया, बीन वादन, छत्तीसगढ़ का माटी मांदरी नृत्य खास रहा। इसी तरह राजस्थान का भोंपी, रावण हत्था व मोरचंग भपंग वादन, सिक्किम का सिंघी छम नृत्य, कठपुतली, कर्नाटक का फुगड़ी नृत्य देख दर्शक उससे परिचित हुए। मध्यप्रदेश का रमढोल नृत्य, राजस्थान का तेरहताली व लंगा, ओडिसा का घुड़का, मांगणियार गायन, उत्तर प्रदेश का चंगेली नृत्य और जम्मू-कश्मीर के मोंगों नृत्य के साथ ही दर्शकों को बायस्कोप भी देखने को मिला।

बिरसा मुंडा ने किया जल, जंगल, जमीन के प्रति जागरूक:
भागीदारी उत्सव में बिरसा मुंडा के जीवन, स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान पर चर्चा हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा कि बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज को जल, जंगल और जमीन के लिए जागृत किया। उन्होंने समाज को उलगुलान आंदोलन से जोड़ा। मुंडा के आंदोलन के करीब 13 साल बाद टाना भगत ने आंदोलन को शुरू किया। उन्होंने युवाओं को अपने संस्कार से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि आदिवासी, तिरंगे और भारत माता का बहुत सम्मान करते हैं(साभार एजेंसी)

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