सुविधाओं के अभाव में बीच में उपचार नहीं छोड़ेंगे कैंसर मरीज,इस मॉडल की तर्ज पर कार्य कर रहा AIIMS

UP / Uttarakhand

(AIIMS,ऋषिकेश)29नवम्बर,2024.

सुविधाओं के अभाव में कैंसर का उपचार छोड़ने वाले मरीजों के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नेशनल हेल्थ मिशन के हब एंड स्पोक मॉडल की तर्ज पर कार्य कर रहा है। इससे मरीजों को घर के नजदीक ही उपचार की सुविधा उपलब्ध हो रही है। साथ ही समय और धन की भी बचत हो रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार बीते आठ वर्षों में कैंसर के मरीजों की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 में एम्स में कैंसर विभाग की शुरुआत की गई थी, तो यहां प्रतिदिन करीब 40 मरीज ओपीडी में पहुंचते थे। अब यह आंकड़ा 200 पार कर चुका है

विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पूरे देश की बात करें तो वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 14 से 15 लाख कैंसर के नए मरीज सामने आ रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में मरीजों के उपचार के लिए न तो पर्याप्त अस्पताल हैं और न ही उपकरण व मेडिकल स्टाफ। जिससे कई लोग बीच में उपचार छोड़ देते हैं।

“हब एंड स्पोक” मॉडल की तर्ज पर कार्य शुरू:
ऐसे मरीजों के लिए एम्स ने हब एंड स्पोक मॉडल की तर्ज पर कार्य शुरू किया है। जिसके लिए एम्स का कैंसर रोग विभाग नेशनल हेल्थ मिशन के तहत समय-समय पर जिलास्तरीय अस्पतालों व अन्य छोटे अस्पतालों के चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित कर रहा है। जिससे मरीजों को कैंसर के उपचार की सुविधा अपने समीपवर्ती अस्पताल में मिल सके।

हब एंड स्पोक प्रणाली के तहत बड़े अस्पतालों में कैंसर के मरीजों के ऑपरेशन व कीमोथेरेपी के बाद प्रशिक्षित स्टाफ अपने स्वास्थ्य केंद्रों पर इन मरीजों की देखभाल व अन्य उपचार कर सके। मरीज को हर छोटी समस्या के लिए बड़े अस्पतालों का चक्कर न काटना पड़े। एम्स ऑन्कोलॉजी विभाग के डाॅ. दीपक सुंद्रियाल का कहना है कि भविष्य में कैंसर के मरीजों की संख्या को देखते हुए हब एंड स्पोक मॉडल तैयार किया जाना बेहद जरूरी है।

क्या है “हब एंड स्पोक” मॉडल:
यह एक संगठनात्मक मॉडल है, जो एक प्राथमिक (हब) प्रतिष्ठान और कई माध्यमिक प्रतिष्ठानों (स्पोक) के साथ एक नेटवर्क में सेवा वितरण परिसंपत्तियों की व्यवस्था करता है। इस मॉडल के तहत सभी माध्यमिक प्रतिष्ठान प्राथमिक प्रतिष्ठान से जुड़े रहते हैं। इस मॉडल में एम्स हब के रूप में कार्य करेगा। इससे अन्य जिला स्तरीय व उपजिला स्तरीय अस्पताल स्पोक के रूप में जुड़े रहेंगे।

172 मरीजों पर किया था अध्ययन:
एम्स ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉ. दीपक सुंद्रियाल ने बताया कि 172 मरीजों पर शोध किया था। जिन्होंने उपचार बीच में ही छोड़ दिया था। इन मरीजों में सबसे अधिक संख्या सामाजिक सहयोग न मिलने के कारण उपचार बीच में छोड़ने वालों की थी। कुछ लोगों ने गरीबी, अस्पताल तक पहुंचने में दिक्कत, कीमोथेरेपी का डर आदि से उपचार छोड़ा था। उक्त शोध अमेरिका के प्रसिद्ध जनरल ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी में बीते 7 नवंबर को प्रकाशित हुआ है(साभार एजेंसी)

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