(गोरखपुर UP)05अप्रैल,2025.
वक्फ की संपत्तियों को लेकर गोपनीय तरीके से रिपोर्ट तैयारी की जा रही है। केंद्रीय एजेंसी की टीम वक्फ संबंधी मामलों को निगरानी कर रही है। सूत्रों की मानें तो वक्फ कितने मुस्लिम लोगों ने घोषित किया था और घोषित होने के बाद से लेकर अभी तक इन जमीनों पर क्या-क्या व्यावसायिक निर्माण हुआ है, इसकी रिपोर्ट एजेंसी की टीम तैयार कर रही है। इसमें मस्जिद, मदरसों को बाहर रखा। राज्यव की टीम ने रिकॉर्ड का सत्यापन शुरू कर दिया है।
गोरखपुर, महराजगंज, संतकबीर नगर, बस्ती, महराजगंज, देवरिया और कुशीनगर मिलाकर कुल 2,551 सरकारी सपंत्तियों पर वक्फ का कब्जा मिला है। इसकी रिपोर्ट भी शासन स्तर पर भेज दी गई है। माना जा रहा है कि पहले इन सरकारी संपत्तियों को कब्जे से मुक्त करवाया जाएगा। इसके बाद वक्फ की जमीनों के व्यावसायिकरण पर कार्रवाई की जाएगी।
सूत्रों ने बताया कि जिला प्रशासन के पास मौजूद राजस्व अभिलेखों में 1366 फसली वर्ष से लेकर वर्ष 1795 के रिकॉर्ड भी मिले हैं। ये रिकॉर्ड उर्दू में हैं, लेकिन इनकी हिंदी प्रति भी तैयार कराई जा रही है। इसमें राजा सत्तासी और नवाब असिउद्दौला की तरफ से दिए गए संपत्ति का उल्लेख है। सूत्रों ने बताया कि ये संपत्ति गोरखपुर जिले के शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में भी है। रिकॉर्ड के अनुसार, नवाब और राजा की तरफ से जो 16 गांव दिए गए थे, वो मौजा उनौसा से लेकर कालेपुर( वर्तमान, डीआईजी बंगला रोड) का क्षेत्र है। इन गांवों को तत्कालीन राजा और नवाब ने धार्मिक उन्नति और बेहतरी के लिए दिया था। आजादी के बाद इन सरकारी जमीनों को गलत तरीके वक्फ में घोषित कर इनका बैनामा कर दिया गया।
राजस्व से जुड़े एक सेवानिवृत्त अधिकारी की मानें तो शहर में भी वक्फ ही नहीं शत्रु संपत्ति पर खूब खेल हुआ है, जो अभी 2017 के बाद तक चला है। 1947 में देश आजाद होने के बाद भारत और पाकिस्तान दो देश हो गए। इनमें बहुत से लोग भारत से पाकिस्तान चले गए गए। आजादी के बाद तत्कालीन सरकार ने भारत में रहने वालों के लिए एक समय सीमा निर्धारित की थी। आजादी के बाद जो इस निर्धारित समय सीमा के दौरान पाकिस्तान चला गया, उसकी जमीनें शत्रु संपत्ति हो गई। इनके रिकार्ड जिला प्रशासन के रेवेन्य या राजस्व विभाग में थे।
नियम बनाया गया कि प्रतिवर्ष जिला प्रशासन की तरफ से इन संपत्तियों के बारे में पूरी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजेगी, जिससे शत्रु संपत्ति के बार में रिकार्ड सरकार के पास रहे। इसके अलावा जमींदारी की जमीनें को जमींदारी उन्मूलन एक्ट लागू होने के तहत तय मानक के बाद जमींदारों से लेकर उसे भी शासकीय कोष के रिकार्ड में दर्ज कर लिया जाएग। 1956 में गोरखपुर नगर पालिका को प्रथम श्रेणी की नगर पालिका घोषित किया गया था, और इसे 15 वार्डों में बांटा गया था इसी के साथ ही इन वक्फ की जमीनों पर खेल शुरू हो गया। धीरे-धीरे जमींदारी की इन जमीनों को वक्फ कर इनपर होटल व अन्य व्यावसायिक परिसर बना दिए गए।
वक्फ घोषित कर सीलिंग में खूब हुआ खेल:
गोरखपुर में नगर पालिका होने के बाद इन शत्रु संपत्ति और वक्फ के नाम पर जमीनों को बेचा खरीदा गया। जबकि नियमानुसार ये सरकारी जमीनें केंद्र के अधीन होती हैं। जिलाधिकारी इसके कस्टोडियन होते हैं। इसी वजह से वक्फ के संशोधन बिल में भी डीएम को ही मूल अधिकारी दिए जाने की बात कही गई है। सूत्रों ने बताया कि अगर किसी संपत्ति को लीज( पट्टा) करना होता था, तो कस्टोडियन उस जमीन के पट्टे की पत्रावलियों को राज्य सरकार के पास भेजता था और राज्यपाल की तरभ से लीज दी जाती थी। लेकिन, वर्तमान रेवेन्यू रिकार्ड की जांच हो जाए हो जाएं तो दावा है कि बिना कस्टोडियन की जानकारी में डाले ही पट्टे की जमीन को सबलीज किए और वक्फ की जमीन को लोगों ने मंहगे-महंगे दामों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाया।
शहर में वक्फ के अलावा 16 शत्रु संपत्तियां भी चिन्हित:
शहर में घासी कटरा, इलाहीबाग, निजामपुर, सदर क्षेत्र, मोहद्दीपुर, नयागांव, तुर्कवलिया, पिपराइच, बांसगांव, करमहा बुजुर्ग इन इलाकों में वाणिज्यिक और आवासीय कब्जे लेकर कुल 16 शत्रु संपत्ति सामने आई है। जिला प्रशासन की तरफ से इसकी रिपोर्ट तैयार की गई है। (साभार एजेंसी)