(प्रयागराज UP)30नवम्बर,2024.
महाकुंभ में ऋषि-मुनियों, देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के बीच प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार खेल जगत के नक्षत्र के रूप में देदीप्यमान मेजर ध्यानचंद्र को भी प्रतिमा के जरिए जीवंत करने जा रही है। देश-दुनिया से आने वाले अतिथियों को संगमनगरी में सबसे पहले हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद्र के दर्शन होंगे। अपने जीवन काल में एक हजार से अधिक गोल दागने वाले ध्यानचंद्र की आदमकद प्रतिमा ट्रिपलआईटी चौराहे पर लगा दी गई है।
ढंककर लगाई गई इस प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर,2024 को करेंगे। मेजर ध्यान चंद्र की आदमकद प्रतिमा इंदौर के मूर्तिकार महेंद्र कोंडवानी ने तैयार की है। कल्चर मार्बल से बनाई गई आठ फीट ऊंची प्रतिमा में मेजर ध्यानचंद्र हॉकी की जादुई स्टिक लिए नजर आएंगे। लोक निर्माण विभाग की ओर से इस प्रतिमा को बनाने का आर्डर प्रसिद्ध मूर्तिकार महेंद्र कोंडवानी को दिया गया था।
कल्चर मार्बल से तैयार की गई है प्रतिमा:
दो महीने की मेहनत के बाद यह प्रतिमा तैयार हुई है। इससे पहले महेंद्र के हाथों तैयार महर्षि भरद्वाज की 31 फीट ऊंची प्रतिमा वर्ष 2019 के कुंभ में बालसन चौराहे पर लगाई गई थी। शहर के मुट्ठीगंज मुहल्ले में जन्मे मेजर ध्यानचंद्र की याद में महाकुंभ में किसी चौराहे पर लगाई जाने वाली यह पहली प्रतिमा है।
देश के खेल इतिहास में मेजर ध्यानचंद का रुतबा कितना ऊंचा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 29 अगस्त को उनकी जयंती राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाई जाती है। 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में समेश्वर दत्त सिंह और श्रद्धा सिंह के पुत्र के रूप में उन्होंने जन्म लिया था। ”हॉकी के जादूगर” कहे जाने वाले ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में भारत को तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बचपन में वह कुश्ती के दांव लगाते थे। महज 16 साल की उम्र में वह भारतीय सेना में शामिल हो गए। सेना में रहते हुए ही उन्होंने हॉकी खेलना सीखा। 13 मई 1926 में भारत के लिए अपना पहला मैच न्यूजीलैंड में खेला। वर्ष 1948 में मेजर ध्यानचंद्र ने हॉकी से संन्यास लेने की घोषणा की थी। वर्ष 2021 में नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान का नाम राजीव गांधी खेल रत्न से बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया था(साभार एजेंसी)