(प्रयागराज UP)04दिसम्बर,2024.
अखाड़ों की आंतरिक न्याय प्रणाली भी बेहद दिलचस्प है। इसमें श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़े की न्याय व्यवस्था सबसे सुप्रीम मानी जाती है। सभी अखाड़ों में श्री पंच होते हैं, लेकिन अटल अखाड़े में श्रीशंभू पंच सबका सरपंच माना जाता है। चाहे किसी तरह के विवाद का निबटारा हो या फिर कोई अहम नीतिगत फैसला लेने की घड़ी। 13 अखाड़ों की ओर से होने वाली ऐसी बैठकों में श्रीशंभू पंच का आसन लगाया जाता है।
अटल अखाड़े का मुख्यालय काशी के कतुआपुरा में है, जबकि मुख्य पीठ पाटन गुजरात में। लेकिन, इसके आश्रम और मठ-मंदिर कनखल हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर सहित देश के पांच सौ से अधिक स्थानों पर हैं। बुद्धि-विवेक के देवता गजानन आदि गणेश इस अखाड़े के देवता के रूप में शुशोभित होते हैं। इसीलिए महाकुंभ में नगर प्रवेश हो या फिर पेशवाई (छावनी प्रवेश) देवता के रूप में प्रथम पूज्य गजानन को लेकर ही सबसे आगे शंभू पंच चलते हैं। इनके पीछे भस्म-भभूत लपेटे अस्त्र-शस्त्र से लैस नागा संन्यासियों की फौज चलती है।
शंकराचार्य के निर्देश पर 569 में हुई थी स्थापना:
इस अखाड़े की भी स्थापना आदि शंकराचार्य के निर्देश पर 569 ईस्वी में गोंडवाना में हुई थी। अटल अखाड़े के सचिव श्री महंत बलराम भारती बताते हैं कि इस अखाड़े में मौजूदा समय में दो लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं। देश भर में पांच सौ से अधिक मठ-मंदिर और तीर्थ हैं, जहां अटल अखाड़े का प्रबंधन चलता है। इस अखाड़े की स्थापना आवाहन अखाड़े से पृथक रूप में की गई। वह बताते हैं कि एक दौर था जब आवाहन अखाड़े में नागा संन्यासियों की संख्या अधिक हो गई थी। तब पूरे देश में धर्म की रक्षा के लिए एक जगह या एक ही केंद्र से इनका संचालन किया जाना संभव नहीं हो पा रहा था।
साठ हजार से अधिक है महामंडलेश्वरों की संख्या
ऐसे में आवाहन अखाड़े के तमाम नागा संन्यासियों को अलग कर अटल अखाड़ा बना दिया गया। महंत नरेश गिरि बताते हैं कि मार्गशीर्ष शुदी रविवार के दिन वनखंडी भारती, सागर भारती, शिवचरण भारती, अयोध्या पुरी, त्रिभुवन पुरी, छोटे रणजीत पुरी, श्रवण गिरि, दयाल गिरि, महेश गिरि, हिमाचल वन और प्रति वन ने मिलकर श्रीशंभू अटल अखाड़े की स्थापना की थी। अखाड़े में इस वक्त महामंडलेश्वरों की संख्या 60 से अधिक है। दो लाख से अधिक संन्यासियों वाले इस अखाड़े में वन और अरण्य संतों की संख्या अधिक है।
महाकुंभ में श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़े के साथ धर्मध्वजा, पेशवाई( छावनी प्रवेश) और शाही स्नान( राजसी स्नान) में निकलेगा। इस अखाड़े के शंभू पंच का तिलक अष्टकोणीय होता है, जबकि महानिर्वाणी अखाड़े का भस्मी तिलक चतुष्कोणीय। यही तिलक इन अखाड़ों के संन्यासियों की पहचान का अहम हिस्सा होता है। महंत वीरेश्वर भारती बताते हैं कि इस अखाड़े में शामिल नागा संन्यासियों ने अपने पराक्रम से सनातन हिंदू धर्म के प्रतीकों की हमेशा रक्षा की है।
राजा-महाराजा भी अचल अखाड़े के नागा संन्यासियों की लेते थे सहायता
श्रीमहंत बलराम भारती बताते हैं कि साहस और पराक्रम में दक्ष इस अखाड़े के नागाओं की सहायता हिंदू राजा-महाराज भी लिया करते थे। कई मौकों पर धर्म की रक्षा के लिए अटल अखाड़े के नागा मुगल सेना से सीधे टकराने से भी पीछे नहीं हटे। इस अखाड़े के नागा संन्यासियों को युद्ध कौशल में निपुण माना जाता रहा है। खिलजी और तुगलक शासकों के समय 14वीं शताब्दी में हमलों का सामना करने को सबसे पहले इसी अखाड़े के नागा आगे आए थे(साभार एजेंसी)